कब खत्म होगा शिकायत का सिलसिला
कहीं दूर न हो जाए हमसे कोई अपना ।
वक्त की आदत है ना ठहरने की
बिन माँगे गमों के संयम में डूबोने की।
क्यों छोटे से सफर में है इतने गिले
एक बार खुल कर जीवन तो जी ले।
हर सुख है दामन में फिर भी मन बेचैन है
उल्लासमय जीवन में भी अश्रुओं से भरे नैन हैं।
कब कुदरत का वो लाजवाब कमाल होगा
प्रेम के रस में बंधेंगे, एकता का जाल होगा ।
एक बार फिर बांधो भरोसे की कड़ी
छूट ना जाए उससे पहले जिंदगी की लड़ी ।
– वंदना झा