आहिस्ता आहिस्ता हम उन ख्वाबों की पर्वतों पे चढ़ गए,
कि आहिस्ता आहिस्ता हम उन ख्वाबों की पर्वतों पे चढ़ गए
पीछे बस इंतज़ार उन्हीं का कर गए
हमें लगा था जो मेरे लिए उस शिखर तक आएंगे
हमें लगा था जो मेरे लिए उस शिखर तक आएंगे
वो राह में ही किसी और के लिए मुझसे मुखर गए
साथ उस किसी और के वो उसी मंज़िल पे रुक गए
और हम इंतज़ार में उनके कुछ परवाने से बन गए
मौसम की आंधी जैसी हवा में ना जाने क्यों हम बह गए
वरना उन्हें भी दिखाते की वो किस चीज से खता कर गए…