जिसने सूरज होकर क़िस्मत को जगाया है,
भ्रूण हत्या का दण्ड भी उसने ही पाया है,
पलने नहीं दिया गर्भ तक में उस देवी को,
लड़की जानकर तुमने जिसे बलि चढ़ाया है।
आँगन में ही खेलती वो नन्हीं सी कली थी,
प्यारी सी सूरत थी उसकी सुलझी भली थी,
क्या क़सूर था उसका कि वो इक कन्या थी,
कुछ दरिंदों के हाथ जो लगी तो कुचली थी।
अठारह बरस की जो हुई तो क्या-क्या न सहा,
किसे बताए वो सब बातें गिला मन में ही रहा,
क्यों छेड़ते हैं कुछ गुंडे उसे रोज़ नुक्कड़ पर,
जानती है वो ही बस उन्होंने क्या-क्या न कहा।
घर से निकलने का तो उसे कोई हक़ ना था,
इस समाज के ख़ातिर किसी पर शक ना था,
अम्ल फेंकते फिर रहे हैं जो कुछ सज्जन यहाँ,
बस धरती देखती रही क्यों कोई फ़लक न था।
ज़रूरत पड़ी गर पैसे की तो उसको बेच दिया,
कितने ज़ख्म दिए उसे कितना ही कुरेच दिया,
शर्म नहीं आई तब भी कभी उन ज़ालिमों को,
अपनी भूख के कारण उसको ही नोच दिया।
हसरतें मिटाने को वो इक तवायफ़ बन गई,
दिल से तो नहीं कभी बस तन से ही रम गई,
दुल्हन तो बनाना नहीं चाहता ये ज़माना उसे,
बस इन भेड़ियों को उसकी कोख ही जम गई।
देखते-देखते जब उसके हाथ हो गए थे पीले,
ख़ुश होकर देखने लगी थी वो सपने कई नीले,
कहाँ पता था होगा ऐसा भारी ज़ुल्म उस पर,
सूख गई हँसी उसकी और आँसू हो गए गीले।
प्यार के नाम पर तो शहद खिलाई जाती है,
काम करवाने को पसीने से निल्हाई जाती है,
यूँ मुरझा जाती है वो कोमल पंखुड़ी फूल की,
आज भी दहेज की आग में जलाई जाती है।
ज़िम्मेदारी का बोझ उठाकर जो चुप रहती है,
माँ-बाप के ख़ातिर ही सब कुछ वो सहती है,
किसे बताए कि शराब उसे पीटती कितना है,
बस अपने अश्क समेटकर उन्हीं में बहती है।
ढंग से बात नहीं करता कोई प्यार क्या करेगा,
टूटकर बिखर चुकी जो कोई तैयार क्या करेगा,
अपनों ने ही तो तिल-तिल कर लूटा है उसको,
कोई ग़ैर आकर उस पर कहीं वार क्या करेगा।
जब जन्म दिया उसने एक नन्हीं संतान को,
कलेजे से लगाकर रखा अपनी उस जान को,
बेटी का छोड़ जाना तो लाज़मी है ना जग में,
पर बेटे की विदाई ने ठेंस पहुँचाई है मान को।
उम्र भर तक बचपन से ही जिसे पाला था ना,
हर परेशानी और सुख-दुख में सँभाला था ना,
फिर क्यों वो शिशु पाल न सके उस माँ को ही,
झल्लाते हुए जिसे ही वृद्धाश्रम में डाला था ना।
क्यों ???
क्यों दुर्बल मानकर हमेशा उसे ही मोड़ा जाता है,
क्यों शीशा जानकर हमेशा उसे ही तोड़ा जाता है,
क्या हर स्त्री के व्यथा-स्वाभिमान की यह गाथा है,
क्यों यशोधरा हो या सीता उसे ही छोड़ा जाता है।
बूढ़ी हो जाने तक भी उसे बोझ ही समझा जाता है,
इस दुनिया की रीतों को बस उसे सताना आता है,
वो तो अकेले ही भार उठा लेती है पूरी दुनिया का,
पर उस नारी का भार ये ज़माना उठा नहीं पाता है !