मुझे याद है वो सभी किस्से और कहानियां,
जब मुश्किल भरी वो हालातें चल रही थी।
उधर कोरोना के ख़त्म होने का नामों – निशा तक नहीं था,
तो वहीं लॉकडाउन और बढ़ाने की बातें चल रही थी।
किसी ने फेंक दिए पत्थर देश के रखवालों पर,
तो कहीं डॉक्टरों पर फूलों की बरसातें चल रही थी।
वहां विदेशों से अमीरों को उड़ा लाए जहाज़ हिफ़ाज़त से,
तो कहीं देश के मजदूर घर लाने पर सियासतें चल रही थी ।
कहीं सोते हुए मजदूरों पर चल गई रेल रातों – रात,
तो कहीं मजदूरों के लिए ‘रेल’ चलाने की इंतेज़ामाते चल रही थी।
कोई निकल पड़ा सड़कों पर, पैदल ही अपने घर को,
तो कहीं बसों में जगह लड़ – भिड़ाकर मिल रही थी।
कोई मर रहा था सड़कों पर अपने घर जाने को,
तो कहीं घर बैठे – बैठे बोर होने की शिकायतें चल रही थी।
कोई नई – नई रेसिपी बनाकर डाल रहा था फोटो स्टेटस पर,
तो कहीं राशन लेने को जुटी भीड़ में लातें चल रही थी।
किसी को मिल गई निज़ात स्कूल – काॅलेज जाने से,
तो कहीं भविष्य ख़राब हो जाने की बातें चल रही थी।
किसी गरीब ने बेच दिए ज़ेवर, बच्चे को फोन दिलाने को,
आख़िर ऑनलाइन जो स्कूल की कक्षाएं चल रही थी।
किसी ने कर दी बच्चे की शादी जल्दी – जल्दी में,
आख़िरकार ख़र्च बचाने की कवायदें चल रही थी।
किसी ने काटे बड़ी मुश्किलों से ये मुश्किल भरे दिन,
तो किसी की ज़िंदगी हस्ते – मुस्कुराते चल रही थी।
कोई रह लिया इस बुरे वक़्त में अपनो के साथ,
तो किसी की अकेले ही अस्पताल में सांसें चल रही थी।
खुशनसीब थे वो, जिनके जनाज़े को मिल गया कंधा अपनो का,
वरना गैरों के हाथो लोगो की लाशें जल रही थी।
कब ख़त्म होगा ये सब, और कब हालात ठीक होंगे,
हर किसी के मन में बस यही ख़्यालाते चल रही थी।
By Bushra malik
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