वों चीते है देश के, वर्दी का मान रखते है
हम दुबके है घरों में,वो हथेली पर जान रखतें है
कभी बॉर्डर पर सीज फायर टूटे
या नक्सलियों द्वारा हिंसा फूटे
कभी भूकम्प शहर तबाह कर जाए
या असम जैसी बाढ़ सब बहा ले जाए
हर आपदा आने पे तुझे बचाएंगे भी
क्यों कहते है “वर्दी में चीते” ,ये दिखाएंगे भी
मन तो बेटी के मुंह से पहली बार
“पापा” सुनने का भी करता होगा
मन तो बूढ़े बाप की इकलौती
लाठी बनने का भी करता होगा
मन तो होता होगा, की राखी पे बहन को खिजाए
मन तो होता होगा, एक बार दीवाली साथ मनाए
मां की गोद याद कर , जमीन पर सोते भी होगे
पढ़ कर खत “प्रिय” के रातों को रोते भी होगे
पर “भारत मां” की एक ललकार पर, इच्छाएं दबा लेते हैं
जीते तो सब है देश के लिए, पर वो मर के दिखा देते है
0 डिग्री के तापमान में, कटीले रेगिस्तान में
चले है फिर भी शान में
उठ जाते है खुद ब खुद, हाथ मेरे सम्मान में
खून पसीना बहता है , फिर भी रगो में भारत बहता है
दुश्मन की गोली के आगे भी , छप्पन का सीना रहता है
मानो या ना मानो.. इस “वर्दी में चीता” रहता है
।। भारत माता की जय।।