जैसे माँ एक मकान को मोहब्बत से घर बनाती है
ठीक वैसे ही उस घर के टीके रहने के लिए पिता खुद को साहस से आधार बनाता है।
माँ घर के आंगन लगे तुलसी के पेड़ की तरह है
जो खूबसूरती के साथ संस्कार सिखाती है
और पिता इस खूबसूरती को बरक़रार रखने के लिए
चुपचाप खून पसीने से सींचता है।
माँ की ममता ,पिता का साहस
मिलकर ही कहीं एक घर बसता है।
©पुरुषोत्तम सिंह