मन में जो आँधी उठे
अपने ही जीवन से तू रूठे
अश्क़ों भरी आँखें हो
फ़िर भी मुस्कुरा देना
अल्फ़ाज़ों की ज़रूरत क्या
इशारों में अफ़साना सुना देना
दिखावे में अक्स नही
पूछे जो कोई “कैसे हो?”
“सब ठीक”, मुस्कुरा कर बता देना
नज़्म–ए–इश्क़ का दीदार कर
गर्दिशें पलकों तले छुपाकर
चाहत के मुखौटे में तन्हाई छिपा देना