आज पूरे 7 महीने और 21 दिनों बाद मैं हॉस्टल से घर वापस आ रही थी। ट्रेन में कॉर्नर वाली मनपसंद सीट भी मिल गई थी। वो किसी फिल्म का डायलॉग है ना कि भारतीय रेल में अकेले सफर करती लड़की किसी खुली हुई तिजोरी से कम नहीं होती, तो मनपसंद सीट का मिलना मतलब उस खुली हुई तिजोरी पर ताला लग जाने से कम थोड़ी ना हुआ।
मनपसंद सीट मिलते ही मेरा पहला काम यह था कि, मैंने अपनी पसंदीदा नोवेल निकाल कर पढ़ना शुरू किया पर आज “डि फ़ॉल्ट इन आउर स्टार्स” की कहानी मुझे हर बार की तरह उतनी ही रोचक नहीं लग रही थी ,क्योंकि मेरा सारा ध्यान तो घर में मम्मी के हाथ से बने लड्डू पर था। मैं यह सब सोच ही रही थी कि मेरे फोन की अजीब सी रिंगटोन ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया।
और मैं अपने ख्वाबों की दुनिया से बाहर आ गई। यह नौंवीं बार था जब मम्मी का कॉल आया था। कहां पहुंची तुम ?खाना खाया?(ये उनका पसंदीदा सवाल था) सामान सब अच्छे से रख लिया है ना? आसपास के लोग तो ठीक है ना ? अरे मम्मी बस-बस रुको जरा, सांस ले लो सब सही है ( मैंने भी एक साथ सब सवालों के जवाब दे दिए) और रायबरेली तक आ गई हूं ,ट्रेन थोड़ी देर से चल रही है तो मैं रात के 10-11 बजे तक पहुंचूंगी और सुनो मैंने ओला बुक कर दी है तो पापा को कहना कि स्टेशन आने की जरूरत नहीं है ।
ऐसे-कैसे जरूरत नहीं है देखो बेटा यह कानपुर है , यहां ऐसा नहीं होता तुम ओला कैंसिल कर दो और मैं पापा को भेज दूंगी। लेट हुई तो पापा वेट कर लेंगे । (मैं मन ही मन थोड़ा बुदबुदाई, कि हां जैसे पापा को तो और कोई काम है ही नहीं) पर खैर यह ऐसी बातें हैं जो मम्मी से मनवा पाना नामुमकिन है । ट्रेन अपने निर्धारित समय से 12 घंटे लेट थी हम 5:00 बजे भोर में घर पहुंचे, घर जाते ही मेरी फरमाइश के सत्तू के पराठे और ना जाने कितने दिनों बाद टपरी या हॉस्टल की चीनी वाली नहीं बल्कि मम्मी के हाथ की अदरक वाली चाय नसीब हुई थी ।
जब आप अपनी जिंदगी के बींस साल उसी घर में वही चाय पीते हैं तो आपको कद्र नहीं होती पर हास्टल में बिताए 7 महीने भी मानो आपकी जीभ के टेस्ट बड़ खोल देते हैं। (मतलब इससे अच्छा क्या हो सकता है कि जब मुझे भूख लगे मैं जाऊं और बोलूं मम्मी भूख लगी है? कुछ भी नही!) अगली सुबह सब की बहुत सारी ख्वाहिश थी पर सबसे पहला काम जो पूरा हुआ वह था मेरे मिस्टर VIP मतलब मेरे बेग पर हमला क्योंकि मम्मी ने कहा था कि घर के सब ही लोगों के लिए उसमें से कुछ न कुछ निकलना चाहिए।
एक बात जो कब से मैरा ध्यान अपनी ओर खींच रही थी वो था हमारे डाइनिंग टेबल के पास रखा एक पिजड़ा ।जो कि कपड़े से ढका हुआ था । पापा की सुबह की पूजा जैसे ही खत्म हुई मंदिर में रखे प्रसाद वाले सारे किशमिश (जिन्हें पहले मैं खाया करती थी) पापा ने उन मोहतरमा को अपने हाथों से खिलाएं थोड़ी पूछताछ के बाद पता लगा कि मोहतरमा का नाम है “मिट्ठू बाबू” जो कि एक बुलबुल है ।
मैं भी उसके पास गई थी इतने में ही कि पिंजरे से बाहर आई और मेरी तो जो हालत खराब हुई पर फिर पता लगा कि मिट्ठू बाबू पिंजरे में सिर्फ रात को जाती है ,बाकि पूरा दिन मेरी मम्मी का कंधा ही उनका असली ठिकाना है । कभी फिश टैंक के ऊपर डांस करती, कभी चम्मच से दूध पीती अतरंगी सी चिड़िया थी वो ,शाम को पापा घर आते तो मिट्ठू बाबू की सिटी ( एक प्रकार की बोली जो केवल वो और मेरे मम्मी-पापा समझते थे) तब तक बंद नही होती जब-तक पापा उसे प्यार से अपनी उंगली पर बैठा ना ले ।
दो-चार दिन तो मुझे भी बड़ा अच्छा लगा मिट्ठू बाबू के साथ ढेर सारी सेल्फी लि, पर फिर मुझे एहसास हुआ कि मेरा अटेंशन बट रहा है, मम्मी-पापा ध्यान ही नहीं देती मुझ पर । पूरा समय बस मिट्ठू-मिट्ठू और ये मिट्ठू मैडम को भी सबका ध्यान अपनी ओर चाहिए था। एक दिन बुरी तरह परेशान होकर मैंने पापा से कहा वैसे ही मैं हमेशा से बीच का बंदर हूं आधा टाइम मम्मी को दीदी के साथ आधा भाई के साथ बांटा इस बार घर आई तो सोचा था कि बस मेरा राज चलेगा पर आपकी बीवी को अपनी मिट्ठू बाबू से फुर्सत हो तब ना, दिन भर उसी के पास रहेंगी उसी से बातें करती हैं।
मैं जा रही हूं हॉस्टल वापस । पापा थोड़ा हंसे और फिर मुझे अपने पास बैठा कर बोला अच्छा एक बात बताओ मेरी बीवी तुम्हारी कौन लगती है ? मम्मी (मैंने एकदम बेरूखी से जवाब दिया) पहले तुम्हारी बड़ी बहन गई फिर तुम और तुम्हारा छोटा भाई भी तुम तीनों का मन तो धीरे-धीरे बाहर लग गया पर तुम्हारी मम्मी अभी भी सुबह तीन कप चाय का पानी एक्सट्रा रख देती है, फिर मैरी भी प्राइवेट जॉब है सारा दिन ऑफिस में रहता था मैंने कई बार कहा की कोई किटी ज्वाइन कर लो बाहर निकलो कुछ नया करो।
शादी से पहले कि वो चुलबुली सी लड़की जिससे मेरी शादी हुई थी वो अब तुम तीनों की मां है। उसे तुम्हारा ध्यान रखना ही पसंद आता है ।तुम सबको एक-एक करके कॉल करके जगाने से लेकर रात को लाइन से तुम तीनों से बात करने के बीच में यह मिट्ठू ही है जिसके साथ तुम्हारी मम्मी का सबसे ज्यादा मन लगता है और उसका मन कहीं लग रहा है तो फिर इसमे बुरा ही क्या है? पापा कि उन बातों को सुनकर दिल किया की अभी मम्मी को गले लगा लूं ।
मिट्ठू बाबू के लिए मैरे मन में जलन अब भी वैसी की वैसी ही थी आखिर कुछ भी हो जिंदगी में कुछ बने के लिए हम अपने घर से कितना दूर हो गए हैं ,और मिट्ठू बाबू अभी भी पापा के हाथ से किशमिश खा रही और मम्मी का सारा लाड़ पा रही है।