एक आज़िम हस्ती है ,
जन्नत की कश्ती है,
अजीज लिखावट है,
अनमोल बनावट है मां ।।
मैं अक्षर तो शब्द है ,
छंद मैं तो निबंध है ,
प्रतिबिंब हूं मैं तेरा माँ।।
कोई आंच हम पर ना आए
कोई मुसीबत हमें छू ना पाए
गहरे समंदर में बांध बन के खड़ी हो जाती है माँ।।
9 महीने रखती है कोख में
फिर जगा देती है गोद में
छुपा के रखती है आंचल में अपने
त्याग देती है सुख सुविधा पूरे करने को हमारे सपने ,
खामोश जिंदगी में स्वर की आहट है,
मेरे आसमान के इंद्रधनुष कि तू ही सजावट है मां।।
स्नेहा का दरिया है,
प्रेम का बगिया है,
काली रात में तारों सी टिमटिमाती है,
अंगारों की राह पर सावन की फुहार है मां।।
फीकी अभिलाषाओं में हौसलौ का वादा है,
हर मुसीबत में मुझे चट्टान बन तूने साधा है मां।
ज़हन में ज्ञान-गंगा बन हिलोरें लेती हैं,
जिव्हा पर सरस्वती बन बैठ जाती है मां।।
ये दुनिया कमियां देख हताषती है मुझे,
फिर भी तु कोहिनूर कह तराश देती है मां।
अबोध बालक को सृष्टि का परिचय कराती है,
तू ही तो पहली पाठशाला कहलाती है मां,
अपने किरदार को बखूबी निभाती है मां।।।