रात, ख़्वाब, तारे सब जगे थे, ऐसे में
चाँद का छिप जाना , अच्छा नहीं होता
कह कर तुझको बेवफ़ा, महफ़िल में बुलाना
फिर अगले मिसरे में खुबसूरत बताना , अच्छा नहीं होता
इक कहानी जो सुनाते-सुनाते रह गया मैं
गलत तेरा किरदार बताना, अच्छा नहीं होता
छुवन से जिसके बढ़ जाती थी साँसे कभी
मौत का इल्ज़ाम उस पे लगाना, अच्छा नहीं होता
हिज़्र के रात भी माथा चूमा हो जिसने
उसको मोहब्बत न कह पाना, अच्छा नहीं होता