मुझे नहीं पता कि मैं यह कहानी क्यों लिख रही हूं।
यह कहानी ले-देकर रुद्र और भावना की ज़िंदगी के 1-2 किस्सो से अधिक और कुछ भी तो नहीं,
रुद्र और भावना से मेरी मुलाकात काशी में हुई थी,वह दोनों वहीं पले-बढ़े थे। रूद्र को देखो तो लगता था जैसे पूरा काशी शहर उसी में समा गया हो, बाजू के एक छोर पर रुद्राक्ष की माला लपेटी हुई थी लाल जबान से निकलती बनारसी बोलीं, गंगा मैया सी गहरी कत्थई आंखें और मस्त-मौला मिजाज।
भावना का मिजाज रूद्र से बिल्कुल अलग था, रूद्र अगर शाम-ए-बनारस था तो भावना सुबह-ए-बनारस ,रुद्र अगर अस्सी घाट था तो भावना मणिकर्णिका घाट।
भावना के माथे पर हमेशा बहुत सी लकीरें बनी रहती थी जिनसे साफ झलकता था उसका तजुर्बा ,जो उसे बहुत छोटी सी उम्र में मिल गया था और हां वह हमेशा एक छोटी सी काली बिंदी भी लगाए रखती थी अपने माथे पर।
भावना का बचपन काशी अनाथालय में बीता था और जवानी का आधा वक्त बनारस के घाटों पर रुद्र का हाथ थामे हुए रूद्र और भावना एक दूसरे को उन दिनों से जानते थे जब भावना का पहला सपना और पहला प्यार दोनों ही टूट चुका था , उस खालीपन में रूद्र कब पुरी तरह से भरता चला गया इसका पता खुद भावना को भी नहीं चला और कब बनारस की गलियों में घूमने वाला दंबग रूद्र भावना का क्यूट रूद्र हो गया इस बात का भी अंदाजा नहीं लगा सके वो दोनों।
रुद्र के साथ की जो बात भावना को सबसे ज्यादा पसंद थी वह शायद यही थी ,कि जब भी वह साथ होता था तो उसकी जिंदगी जिंदा हो जाती थी और माथे की लकीरें कम ।
वह अक्सर अपनी उथल-पुथल भरी जिंदगी के सारे जवाब रुद्र की आंखों में देखकर खोज लेती थी ,पर ऐसा करना उसके लिए आसान नहीं होता था क्योंकि अगर रुद्र उसे उसकी तरफ देखता हुआ कभी पकड़ लेता ,तब तो भाई बस; भावना की नजरें ऐसे झुक जाती कि अपना ₹10 का खोया हुआ सिक्का खोज कर ही वापस मानेंगी।
अजीब था उन दोनों के बीच का प्यार ।
भावना को घाट जाकर इतनी खुशी मिलती थी जितनी शायद हमें हमारे आखरी एग्जाम देने पर ही होती है या उसे भी कही ज्यादा , क्योंकि बनारस की याद घाटों पर उसे सुकून मिलता था।
वो अक्सर कहती थी हमको घाट भाता है ;काहे की गंगा मैया सब देती है, तुम खाली पता लगाकर आना की असलियत में चाहिए क्या तुमको। उसका मानना था कि भले ही दुनिया वालों ने दुनिया देखी हो पर उसने गंगा किनारे की ढलती हुई शाम देखी है ।
रुद्र को अक्सर बस यही चिंता सताती थी की भावना खुश है या नहीं ,
उस दिन भी जब वह दोनों घाट के उस पार गए हुए थे, तब रूद्र ने यही सवाल किया , तो भावना ने का जवाब था कि, पहले उस रेत के टीले तक रेस लगाओ फिर बताएंगे।
रेत का टीला इतना दूर था कि, वहां तक भागते-भागते वह दोनों ही थक कर रेत में गिर चुके थे । फिर जैसे तैसे अपनी हालत पर हंसना बंद करके वह दोनों खडे हुए ,उन्हें अपने साथ लिए कदमों के निशान साफ-साफ दिखाई दे रहे थे, रूद्र ने भावना का हाथ पकड़ते हुए कहा चलो वापस चलो, पर भावना कुछ देर और रुकना चाहती थी तो वो वहीं रेत पर ही बैठ गई।
वहां से वो चमकते हुए गंगा मैया के पानी को देख रही थी ,उसे वो किनारे के दो छोर भी नजर आ रहे थे ,जो आपस में कभी नहीं मिलते। शायद यही वजह थी कि वह जिंदगी में किसी के भी साथ नहीं चलना चाहती थी ,उसे लगता था कि किनारों के जैसी जिंदगी से तो अच्छा है कि, गंगा मैया में तैरने वाली वह दीया ही बन जाए जो बस कुछ पल के लिए ही सही पर उन थोड़े से पलों में दूसरों की जिंदगी को रोशन कर दे। यह किनारों की तरह साथ-साथ चलना और कभी ना मिल पाने के दर्द को संभालने से वह डरती थी शायद।
रुद्र भी कुछ सोच ही रहा था कि इतनी सी देर में ही भावना ने उसके पैरों के चारों ओर एक छोटा सा किला बना दिया। इस बात का आभास होते ही ,अपने पैरों को आगे बढ़ाया और लड़खड़ाते हुए गिरने ही वाला था कि भावना ने उसका हाथ थामते हुए कहा ,लंगूर कहीं के; मेरे बिना चलना भी नहीं आता क्या ?
और वह दोनों कुछ ऐसे एक दूसरे का हाथ थाम कर साथ चलने लगे जैसे साथ-साथ चलना सीख रहे हो ।
भावना ने कुछ दूर आगे जाकर रुद्र का हाथ छोड़ दिया और अपने हाथों को 90 डिग्री के अंश में खोलते हुए किसी पंछी की तरह उड़ने लगी।
तब ही पीछे से आवाज़ लगाई अरे-अरे अपने लंगूर को छोड़कर कहां चली? मैं गिर जाऊंगा तुम्हारे बिना ।
तो आओ तुम भी साथ चलो , ऐसा भावना ने कहा और इस बात पर रूद्र का जवाब ये था कि मेरे पास तो पंख ही नहीं ।
भावना ने अपने कदमों को वापस लिए और कहा हां! नहीं है क्योंकि, तुम हवा हो तुम वह हो जिसके बिना मेरे इन पंखों का भी कोई वजूद नहीं।
रूद्र हमेशा की तरह हंसने लगा।
रूद्र भावना के साथ हमेशा चलना चाहता था और भावना को खुद के किनारा बन जाने का डर हमेशा सताता था, वो एक बार पहले भी प्यार में हार चुकीं थी और प्यार की वजह से भी अपना बहुत कुछ खो चुकी थी , वो समझती थी कि इस बात को कि जो उसने अपने जीवन में पहले महसूस किया वह प्यार नहीं था और इन सब बातों के साथ ही साथ उसे रुद्र पर भी पूरा भरोसा था।
इसी बीच भावना की फाइनल रिजल्ट आ गए और देखते ही देखते उसकी नौकरी बनारस के बाहर किसी बड़े शहर में लग गई ,अब भावना को पास उसका अपना खुद का घर था अपनी खुद की नई दुनिया एक ऐसी जिंदगी जिसे वह हमेशा से पाना चाहती थी।
उसने रुद्र को मिलकर यह सारी बातें समझाने के लिए मैसेज किया पर रुद्र अपनी नानी के गांव आजमगढ़ गया हुआ था, और जब आधी रात को रूद्र ने अपना मोबाइल चेक किया तो उसने पर उसने भावना का मैसेज मिला जिसमें उसने लिखा था, अपनी नई नौकरी के बारे में और अपने फाइनल ईयर के रिजल्ट के बारे में और यह भी कि उसे आज भोर में ही निकलना होगा।
गठरी में बस थोड़ा सा बनारस और थोड़ा सा तुम को बांध कर ले जाऊंगी सफर लंबा है पर बनारस मेरी पहचान है और तुम जरूरी हो, ये उस मैसेज के आखिरी कुछ अल्फ़ाज़ थे।
उस मैसेज के बाद बहुत कुछ टूटा बहुत कुछ बिखरा और फिर सब संभल गया ।
भावना के अचानक जाने के फैसले से रूद्र नाराज था, बनारस छोड़ कर जाना भावना के लिए भी आसान नहीं था और रुद्र को छोड़कर जाना तो नामुमकिन पर कुछ समय बाद सब संभल गया रूद्र आज भी बहती सी हवा हैं और उसकी कथई रंग की आंखों में आज भी वो सुकून है जिसकी जरूरत भावना को जिंदगी भर रहेगी और ऐसा इसलिए हो सका क्योंकि उन दोनों के बीच का प्रेम अजीब था।
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