ये चांद है, खूबसूरत है मगर बहुत दूर है,
ये आफताब भी, इसपर नाजाने किसका सुरूर है,
बहुत तड़पे हैं, कसमें खाई हैं इनकी,
तभी इनमें भर भर के, दूरी है, गुरूर है ।
चांद है ये, खूबसूरत है मगर बहुत दूर है।।
लिख रखी है हर ख़ता किताबो में,
पन्ने से पर स्याही कोसों दूर है,
यूं तो लिखना पसंद नहीं करता,
बात क्या है नाजाने हाथ खुद लिखने को मजबूर है।
यह चांद है यारो, खूबसूरत है मगर, बहुत दूर है।
कौन गिरा, कौन उठा,
कौन है पास, कौन कितना दूर है,
अरे मैं खुद हूं मंजिल,
यह दुनिया तुम्हारी में, मेरा ही दस्तूर है।
यह चांद है साहब, खूबसूरत है मगर बहुत दूर है।
यहां आशिक़ बहुत है, तरह तरह के इश्क़ है,
कई मिलते है हर शाम, कई सिर्फ देखने को मजबूर है।
यहां इबादतखाने लाखों हैं,
करोड़ों मंदिर हैं,
बस एक खुदा ही है, जो इन सबसे दूर है।
मैं गुलज़ार नहीं हूं पर तारीफ हुस्न की आती है,
कुछ ख्वाहिशें अधूरी है और कुछ नज़्में लिखनी बाकी है,
हर शाम बैठ जाता हूं देख कर आस्मां,
मेहताब की चमक बंजर जमीं पर बरसाती है,
और तेरे हुक्म की तामील कर देते ज़रा (२)
कुछ फ़रेब है सुने और कुछ लहज़े मुलाकाती है,
हर और दौड़ आए हम इस ज़हन की चाहत से,
नाजाने कहां से यह खुशबू आती है,
और भूल बैठे वो गुल बगीचे का,
जिसे तू अपनी पलकों से सजाती है,
कुछ मशरूफ है अपनी खुदगर्ज़ी में,
कुछ अधूरे लम्हों से जी लिए,
कुछ लिख दिए हैं दास्तां
कुछ ज़हर समझ के पी लिए,
हमने तो इश्क़ उसके नूर से किया,
जो चांदनी से जगमगाती है,
वो हो यूं ना हो इस हकीक़त में,
वो जालसाज़ हो शराफ़त में,
यह चांदनी है बेगर्ज़,
यह भी तो याद उसीकी दिलाती है।
ये चले जाएं सब किसे गम है,
जो चाहिए सबसे ज्यादा वही सबसे कम है,
और गैरत है तो उसे भी संभल लेते,
जिसे चाहा मैंने, वो किसी और का सनम है,
हर बार छुप के दुआएं मैंने मांगी है,
जो अपनी थी खुशियों वो उससे बांटी है।
ये दुश्मनी जिस तरह निकालते हैं लोग,
जो जाता है दूर उसे ही बुलाते हैं लोग,
और अक्स ढूंढते है दूसरों में अपने,
उसी अक्स को आइने में छुपाते है लोग,
हम बहुत दूर हो चुके हैं,
हम भूल चुके है उनको,
हर बार रूठने पे ना मनाते है लोग,
छोड़ बार बार मनाना दूसरे अपनाते है लोग,
और हर शख्स से इश्क़ निभाते है,
फिर उसी को भूल जाते हैं लोग,
बहुत गिले है मुझे खुदा से,
क्यूं हर बार वही दूर करने की कोशिश करता है,
जिसे खुद से भी ज़्यादा चाहते है लोग।
हां हूं फ़साना तू खुल कर देख,
आज़मां मत तू पढ़ कर देख
अगर हूं में कुछ तो दिख जाऊंगा,
रख कीमत मैं बिक जाऊंगा,
लिख लिखावट इश्क़ की,
कलम सा लिख जाऊंगा,
सौ बार लिख सौ बार पढ़,
बस छुपा मत तूं पढ़ कर देख,
आ गया हूं आ रहा हूं
मैं बता रहा था छुपा रहा हूं,
मैं गा रहा था, गुनगुना रहा हूं,
मैं खुल था था हटा रहा हूं,
तुम बदले नहीं हरकतों से,
में आशिक़ था अब जा रहा हूं,
मत रोक मुझे तूं महसूस कर,
दिख जाऊंगा मैं तूं पढ़ कर देख।
बेवफ़ा ने पूछा बेवफ़ा से, वफाई क्या है,
झूठ ने पूछा झूठ से, सच्चाई क्या है।
यूं तो गिला है पूरी जिंदगी से खुदा भी जानता है
आवाज़ देती है दुआएं, अभी आजमाई क्या है।
झूठ ने पूछा झूठ से, सच्चाई क्या है।।
हर हद तोड़ जाती है तेरी तीरों सी बातें,
सब तोड़ी है क्यूं, लगाई क्या है।
हद्द हो जाती है नकारेपन की,
जब बंधी पतंग पूछती है ऊंचाई क्या है।
मदमस्त शराबी इश्क़ में, जमाने को कहता है,
अभी चढ़ी नहीं हमें, क्यूंकि अभी पीलाई क्या है।।
झूठ ने पुछा सच्चाई क्या है।।
लावे से पानी निकालता रहा उम्रभर,
आग जलाई नहीं कभी तो लगाई क्या है।।
हसरत गैरों से पूछी जाती है मेरी,
मैंने जो चाहा जानते हो तुम, छुपाई है सच्चाई, बताई क्या है।
हर नगम की तुम दात देते हो,
खुद लिखी है मैंने चुराई क्या है,
और,
बुरा है सफर सच्चाई में,
झूठ बोला है इसमें बुराई क्या है।।