जब तक मैंने उस कॉफ़ी कैफ़े के अंदर कदम नहीं रखा था तब तक मेरे लिए किसी कॉफ़ी कैफ़े की कीमत फुटनोट से ज्यादा नहीं थी, जहां ₹10 की साधारण सी काफ़ी को ₹40 का बनाकर प्रॉफिट कमाया जाता है।
मुझे खुद हमेशा से महंगी कॉफी से ज्यादा सड़क किनारे मिलने वाली चाय का स्वाद पसंद आता था। यह पहली बार नहीं था जब मैं किसी कैफ़े में दाखिल हुई थी बाकी के सभी कैफ़ की तरह यहां भी लकड़ी की कुर्सियां, रंग बिरंगी दीवारें और चमचमाती लाल-नीली रोशनी वाला बल्ब था।
यहां भी मौजुद हर चीज बेजान सी ही थी, सिवाय उन दो दोस्तों के। भावना और रुद्र शायद अपनी कॉलेज खत्म कर के या किसी क्लास को बंक करके उस कैफ़े में आए थे। अपनी कॉफ़ी को खत्म करने तक मैंने दूर बैठ कर ही उनके नाम के अलावा भी कुछ और बातें उन दोनों के बारे में जान ली थी। जैसे कल शाम भावना ने पहली बार एक गोल रोटी बनाई , रूद्र की कोचिंग क्लास में कुछ लड़कियों ने कैसे आगे की सीट पर बैठने के लिए रूद्र से बहस की और भावना किस हद तक उन लड़कियों की इस हरकत पर नाराज हुई।
भावना ने अपने बाल की हेयर क्लिप निकाल कर किनारे रख दी, रुद्र: अरे अच्छे लग रहे थे तुम्हारे बाल उस तरह से भावना: हां! पर मुझे वो हेयर क्लिप चुभ रही थी ।
रुद्र: अच्छा तो अब तुम्हारा मन अपने असली अवतार में आने का है ? भावना: कौन से ? और ऐसा कहकर रुद्र ने भावना के बाल बिगाड़ दिए। भावना ने अपने बालों को वापस से संवारने की कोशिश की पर जब वह ठीक से संवार ना पाई तो, रुद्र ने खुद भावना के एक-एक बाल वापस से संवारे।
वह उसके बाल ठीक वैसे ही संवार रहा था जैसे कोई कुम्हार कच्ची मिट्टी को संभालता है ,जैसे-जैसे रूद्र भावना के बालों को संवारता भावना के चेहरे पर मासूमियत भरी और चालाकी वाली हंसी उभर आती , कुछ इस तरह कि हंसी कि जैसे उसे वह हेयर क्लिप परेशान कर ही नहीं रहा था , जैसे वह हमेशा से चाहती थी कि रुद्र की उंगलियां उसके बालों में फंसी रहें और वह उस बेजान से कैफ़े में बैठकर रुद्र की आंखों में अपना प्रतिबिंब देख सके और हर क्षण में अपनी जिंदगी को जी भर के जी सकें।
अब उस कैफ़े से बाहर निकलने के बाद भी मेरे लिए कॉफ़ी कैफ़े कि किमत फुटनोट ही है जहां की रंगबिरंगी बेजान सी चारदीवारियों के बीच कुछ बेजान सी जिंदगीयां जी उठती है।
-manni