Urdu poetry by Sujay Phatak
- ये कि मेरी रूह है ये कि मेरी जाँ
कुछ है कहीं कहीं तेरे बिना कहाँ
शख्स जो मिला था मुझे राह में कहीं
एक पल में न जाने वो खो गया कहाँ
सोचते हैं हम ये गुलिस्ताँ को देख कर
बाग़ में हरियाली अब वो खुशनुमा कहाँ
चले थे जिसके साथ बहुत दूर तलक हम
है वो रहनुमा कहाँ है अब वो रास्ता कहाँ
जिसके लिए थी हमने क़ायनात छोड़ दी
है वो दिलरुबा कहाँ उस से राबता कहाँ
बोली थी एक बार करती हूँ तुमसे प्यार
इश्क़ वो गलियों में जाने खो गया कहाँ
वादे पर एक जिसके जहाँ छोड़ छाड़ के
चल पड़े थे ले के अपने दिल का कारवाँ
अजीब इश्क़ था वो थी ग़ज़ब ही दास्ताँ
शायद ही था कोई मेरा वो इश्क़ बद-गुमाँ
2.
सामने अभी ज़माने के सवाल आ जाएँगे
अभी नींद आ जायेगी खयाल आ जाएँगे
छोड़ दिया है भुलाया नहीं है न उकसाईये
सामने ज़िन्दगी के सारे बवाल आ जाएँगे
हम तो समझे थे आएँगे वो भी तैयारी से
क्या जानते थे कि वो निढाल आ जाएँगे
उन तंग कूँचों से गुज़रे तो सोचा नहीं था
एक ही साथ माज़ी-ओ-हाल आ जाएँगे
3.
कूँचे में फ़िर अचानक वो शख्स आ गया
न जाने कैसे लेकिन बर-अक्स आ गया
महफ़िल में उस घड़ी को चार चाँद लग गए
ज़ब मौज-ए-रस्क में वो हम-रक्स आ गया
किस्सा तो कुछ अजब सा हुआ एक मर्तबा
कि धुंध में गहरी सी फिर वो अक्स आ गया
Sujay Phatak.