Hindi poems on life
तस्वीर बनाने के लिए मैंने कलम उठायी है
क्या बनाने निकली थी और क्या बन आयी है’
कब से सोच रही हूँ की क्या कमी है
गलती मेरी कलम की नहीं
तेरे चहरे पर ही उदासी जमी है
एक बार मुस्कुराकर देख चेहरा कैसे खील जायेगा
जिसे देखकर हर शख्स जल जायेगा
सूखे पतझड़ के बाद बहार को तो आना ही है
फिर से हरे पत्तों से पेड़ों को सजाना ही है
जिंदगी इतनी भी बदसूरत नहीं है
इसे जीने के लिए हमें किसी सहारे की जरुरत नहीं है
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इंतजार में आपके करते हैं लम्हें ऐसे
बिना कसूर किए सजा मिली हो जैसे
बयां करने के लिए लफ्ज़ ही नहीं है
पर आप समझ लेंगे इतना यकीन है
यह फासले भी क्या रंग दिखा रहे हैं
जितने दूर हैं हम दिल इतने करीब आ रहे हैं
हर पल खींच रहा है मुझे आपकी और
जैसे बंदे हुए कोई मजबूत डोर
मैं भी खींची चली आ रही हूं
हर चीज में हर नजर में
बस आपको पा रही हूं
एक जुनून सा है आपके करीब आने का
एक नशा सा है आपको पाने का
दिल और रातों का हिसाब ही नहीं है
आपकी शिकायतों का कोई जवाब ही नहीं है
समझती हूं मैं आपका प्यार
इसलिए सर आंखों पर है आपकी हर तकरार