(When you finally discover your self)
Last year when I visited my home towns, I got some peaceful time and jotted down these lines. These made me discover myself.
वह कमरा, वह मेरे घर में मेरी जगह, वह दुनिया में मेरी अपनी जगह;
जहां एहसान न था किसी का, जहां गुमान न था किसी का ,
जहां हंसना ,रोना ,जगना, सोना ,कुछ भी मना न था |
जहां मेरी गुड़ियों का बसेरा था ,जहां मेरी कहानियों का पसारा था,
वह जगह जब से छूटी, छूटी सारी आजादी ….
अब तो किराया देना पड़ता है, हर इंच का, हर पल का, हर मुस्कान का;
हर शख्स को, सारे अपनों को, सारे अनजानो को,
यही तो तरक्की है सारी किश्तें भर पाने का सुख है, गुमान है;
तब तो केवल बचपन था, सवाल सौ थे और सपने हजार….
आज सारे जवाब हैं और ऊंचे आसमान हैं…..
फिर भी वह कमरा लौटा ले गया उस अल्हड उम्र में…
जहां एहसान न था किसी का, जहां गुमान न था किसी का ,
जहां हंसना ,रोना ,जगना, सोना ,कुछ भी मना न था |
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अपने शहर में पराया बनके…..
लौट आया हूं मैं एक साया बनके …..
वजूद को जहां पीछे भूल गया था …….
ढूंढने उसे फिर से बिना रूह की काया बनके ….
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मुझ पर कोई एहसान न करो …
ना मुझसे करो कोई गुजारिश ….
छोड़ दो मुझे अपने आप के साथ ….
पनपने दो मेरी हर ख्वाहिश….
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आज कलम बड़ी तेज तेज चल रही है…..
आज बंदिशें बड़ी जल्दी जल्दी बन रही है ….
यह समा ही है जो उड़ा रहा है मुझे ऊंचे आसमान में
मैं मदमस्त तैर रही हूं पंछी की तरह,
बीच में जो बादल आ जाए तो फूंक मार के उड़ा देती हूं
बीच में जो बिजली चमके तो मुट्ठी में समेट कर हटा देती हूं…
रोकना आज मुझे बस में नहीं किसी के ….
हां बस साथ उड़ने की कोशिश भर कर सकते हो….
गर जो ना हो पाए तो जहां थक जाओ वही मेरा इंतजार कर सकते हो …
मैं आऊंगी लौट कर जरूर…
थोड़ा सब्र रख लेना …
अभी जी लेने दो मुझे…
बस तब तक मेरी कदर रख लेना
Sucheta Asrani